Biography

Subhadra Kumari Chauhan Biography in Hindi | सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय, जयंती, की जीवनी, इतिहास, कहानी, कविताये, बेटा, पति, अवार्ड (Subhadra Kumari Chauhan Biography In Hindi, history, Age, poems in hindi, Height, son, Husband, Caste, family, Career, award)

सुभद्रा कुमारी चौहान एक भारतीय कवयित्री थीं, जिनकी रचनाएँ बहुत भावनात्मक रूप से आवेशित होती थीं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना झाँसी की रानी है जो बहादुर झाँसी की रानी, ​​लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करती है।

संपूर्ण हिंदी साहित्य में, यह वह कविता है जिसे भारत के लोगों द्वारा सबसे अधिक गाया जाता है। भारत सरकार ने उनकी याद में एक भारतीय तट रक्षक जहाज का नाम रखा है।

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय

नाम (Name) सुभद्रा कुमारी चौहान
प्रसिद्द (Famous) कवि होने के नाते झाँसी की रानी’ ‘मुकुल’ ‘त्रिधारा’ कविताओं के लिए
जन्म तारीख (Date of Birth) 16 अगस्त, 1904
जन्म स्थान (Place of Born ) निहालपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
गृहनगर (Hometown ) जबलपुर , मध्य प्रदेश
मृत्यु तिथि (Date of Death ) 15 फरवरी, 1948
मृत्यु का स्थान (Place of Death)  सिवनी जिला , मध्य प्रदेश
मृत्यु का कारण (Death Cause) कार दुर्घटना में मुत्यु
उम्र (Age) 43 वर्ष (मृत्यु के समय )
शिक्षा (Education) नौवीं कक्षा पास
स्कूल  (School) क्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल
पेशा (Profession)   लेखक
प्रसिद्द रचनाये (Famous) झाँसी की रानी’ ‘मुकुल’ ‘त्रिधारा’
आँखों का रंग (Eye Color) काला
बालो का रंग( Hair Color) काला
धर्म (Religion)  हिन्दू
नागरिकता (Nationality) भारतीय
वैवाहिक स्थिति (Marital Status)   शादीशुदा

सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रारंभिक जीवन ( Subhadra Kumari Chauhan  Early life)

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में एक संपन्न परिवार में हुआ था । वह जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थी। उनके पिता का नाम दिलीप चौहान था।

सुभद्रा कुमारी का विद्यार्थी जीवन प्रयाग में गुजरा। उनको बचपन से ही हिंदी साहित्य की कविताये ,रचनाये पढ़ने में बहुत मज़ा आता था। सुभद्रा की सबसे अच्छी दोस्त महादेवी वर्मा थी जो सुभद्रा की तरह की कविताये लिखती थी और प्रसिद्द कवयित्री थीं।

सुभद्रा कुमारी चौहान की शिक्षा (Subhadra Kumari Chauhan Education)

उन्होंने शुरू में इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की और 1919 में मिडिल-स्कूल की परीक्षा पास की। उसी वर्ष खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से शादी के बाद, वह जबलपुर चली गईं।

सुभद्रा कुमारी चौहान का परिवार (Subhadra Kumari Chauhan Family)

पिता का नाम (Father’s Name) ठाकुर रामनाथ सिंह
पति का नाम (Husband’s Name) ठाकुर लक्ष्मण सिंह
बेटियों का नाम (Daughter’s Name) सुधा चौहान और ममता चौहान
बेटों के नाम (Son’s Name) अजय चौहान, विजय चौहान और अशोक चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान की शादी (  Subhadra Kumari Chauhan Marriage )

सुभद्रा कुमारी की शादी बहुत ही कम उम्र में हो गयी थी। साल 1919 में जब सुभद्रा मात्र सोलह साल की थी तब उनकी शादी मध्यप्रदेश राज्य में खंडवा जिले के रहने वाले  ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से कर दी गयी। शादी के बाद सुभद्रा कुमारी मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में आ गयी।

शादी के बाद सुभद्रा कुमारी के पांच बच्चे हुए जिनका नाम सुधा चौहान, अजय चौहान, विजय चौहान, अशोक चौहानत और ममता चौहान था। उनकी बेटी सुधा चौहान की शादी प्रेमचंद के बेटे अमृतराय से हुई थी , सुधा चौहान ने अपनी माँ की जीवनी लिखी थी जिसका नाम था ‘मिले तेज से तेज’।

सुभद्रा कुमारी चौहान का करियर ( Subhadra Kumari Chauhan Writing career)

सुभद्रा कुमारी चौहान बहुत ही उत्तम दर्जे की महान कवयित्री थी और इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की जब उनकी उम्र केवल नौ साल थी तब उन्होंने एक कविता ”नीम” लिखी थी और उनकी इस कविता को पत्रिका ”मर्यादा”ने प्रकाशित किया था।

सुभद्रा को बचपन से ही कविताये लिखने का शौक था लेकिन उस समय कविता लिखने के पैसे न मिलने के कारण उन्होंने कविताओं के साथ साथ कहानियाँ लिखना भी शुरू कर दिया था ताकि कहानियो के बहाने से पैसे कमा सके।

उन्होंने अपने जीवनकाल में कई कविताये लिखी ,उनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्द कविता ” झाँसी की रानी” है, सुभद्रा कुमारी ने रानी लक्ष्मी बाई की जिंदगी के बारे में बताते हुए बहुत ही बढ़िया ढंग से कविता लिखी।

खूब लड़ी मर्दानी थी वो तो झाँसी वाली रानी थी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
 

कानपुर के नाना की मुहन बोली बाहें च्चवीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वो संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वो नाना के संग खेलती थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथाएँ उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख मरते पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैंया घेरना, दुर्ग तोड़ना यह थे उसके प्रिय खिलवाड़।

माहरॉशट्रे-कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ बन आई रानी लक्ष्मी बाई झाँसी में,
राजमहल में बाजी बधाई खुशियाँ च्चाई झाँसी में,
सुघट बुंडेलों की विरूदावली-सी वो आई झाँसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

उदित हुआ सौभाग्या, मुदित महलों में उजियली च्छाई,
किंतु कालगती चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई है, विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मारे राजाजी, रानी शोक-सामानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

बुझा डीप झाँसी का तब डॅल्लूसियी मान में हरसाया,
राज्या हड़प करने का यह उसने अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौज भेज दुर्ग पर अपना झंडा फेहराया,
लावारिस का वेराइस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया।

अश्रुपुर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकोंकि माया,
व्यापारी बन दया च्चहता था जब वा भारत आया,
डॅल्लूसियी ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

छ्चीणी राजधानी दिल्ली की, लनोव छ्चीना बातों-बात,
क़ैद पेश्वा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घाट,
उडापुर, तँजोरे, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ तट वज्रा-निपात।

बेंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी रोई रनवासों में, बेगम गुम से थी बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कॅल्कटा के बाज़्ज़र,
सारे आम नीलाम च्चपते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,
“नागपुर के ज़ेवर ले लो, लनोव के लो नौलख हार”।

यों पर्दे की इज़्ज़त परदेसी के हाथ बिकनी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कुटिया में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वियर सैनिकों के मान में था अपने पुरखों का अभ्मान,
नाना घूँघूपंत पेश्वा जूता रहा था सब सामान,
बाहें च्चवीली ने रन-चाँदी का कर दिया प्रकट आह्वान।

हुआ यगना प्रारंभ उन्हे तो सोई ज्योति जगनी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लनोव लपते च्छाई थी,
मेरात, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी।

जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुच्छ हुलचूल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इस स्वतंत्रता महायगना में काई वीरवर आए काम,
नाना घूँघूपंत, तांत्या, चतुर अज़ीमुल्लाह सरनाम,
आहमएदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंग, सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुर्बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इनकी गाथा छ्चोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दनों में,
ल्यूटेनेंट वॉकर आ पोहॉंचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ धंध आसमानों में।

ज़ख़्मी होकर वॉकर भगा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी बढ़ी कल्पी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा तक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वेलियार पर अधिकार।

अँग्रेज़ों के मित्रा ससिंड़िया ने छ्चोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

विजय मिली, पर अँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंहकी खाई थी,
काना और मंडरा सखियाँ रानी के संघ आई थी,
युध क्षेत्रा में उन दोनो ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे हुघरोसे आ गया, है! घीरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैंया के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वो संकट विषम अपार,
घोड़ा आडया, नया घोड़ा था, इतने में आ गये आवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, हनी लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी, इसे वियर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी गयी सिधार चीता अब उसकी दिव्या सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हुमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता-नारी थी।

दिखा गयी पाठ, सीखा गयी हुमको जो सीख सीखनी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

जाओ रानी याद रखेंगे यह कृतगञा भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जागवेगा स्वतंत्रता अविनसी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमित निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लदी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

झाँसी की रानी की कविता हिंदी साहित्य में सबसे ज्यादा पढ़ी और गाए जाने वाली कविताओं में से एक है. झाँसी की रानी की कविता में 1857 की क्रांति में उनकी भागीदारी के बारे बताया है की कैसे उन्होंने अंग्रेजो से मुकाबला किया था।

झाँसी की रानी की समाधि पर

इस समाधि में छिपी हुई है,
एक राख की ढेरी।
जल कर जिसने स्वतन्त्रता की,
दिव्य आरती फेरी।।

यह समाधि, यह लघु समाधि है,
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है,
लक्ष्मी मरदानी की।।

यहीं कहीं पर बिखर गये वह,
भग्न विजय-माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं,
है यह स्मृति-शाला सी।।

सहे वार पर वार अंत तक,
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर,
चमक उठी ज्वाला-सी।।

बढ़ जाता है मान वीर का,
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की,
भस्म यथा सोने से।।

रानी से भी अधिक हमें अब,
यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की,
आशा की चिनगारी।।

इससे भी सुन्दर समाधियाँ,
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में,
क्षुद्र जंतु ही गाते।।

पर कवियों की अमर गिरा में,
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती
है, वीरों की बानी।।

बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मर्दानी वह थी,
झाँसी वाली रानी।।

यह समाधि, यह चिर समाधि,
है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है,
लक्ष्मी मरदानी की।।

कविता हिंदी साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी और गाई जाने वाली कविताओं में से एक है। यह और उनकी अन्य कविताएँ, वीरों का कैसा हो बसंत, राखी की चुनौती और विदा, खुलकर स्वतंत्रता आंदोलन की बात करती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

असहयोग आंदोलन में भाग लेना

1921 में, सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए । वह नागपुर में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला सत्याग्रही थीं और 1923 और 1942 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के कारण उन्हें दो बार जेल भी हुई थी 

सुभद्रा कुमारी चौहान कवियित्री की रचनाएं (Subhadra Kumari Chauhan poems)

उन्होंने तीन कहानी संग्रह लिखे जिनमें बिखरे मोती, उन्मादिनी और सीधे साधे चित्र शामिल हैं। कविता संग्रह में मुकुल, त्रिधारा आदि शामिल हैं।

कहानी संग्रह:-

  • बिखरे मोती (1932)
  • उन्मादिनी (1934)
  • सीधे साधे चित्र (1947)

कविता संग्रह:-

  • मुकुल
  • खिलौनेवाला
  • ये कदम्ब का पेड़
  • त्रिधारा

सुभद्रा कुमारी चौहान रचनाओं की विशेषता

सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविताये ,कहानियाँ और रचनाओं को बहुत ही आसान शब्दो में लिखा था । उन्होंने वीर कविताओं के अलावा बच्चों के लिए कविताएँ भी लिखीं। उन्होंने मध्यम वर्ग के जीवन पर कुछ बड़ी कहानियाँ भी लिखीं। सुभद्रा ने अपनी लेखन में हिंदी खड़ीबोली का इस्तेमाल किया था।

सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु (Subhadra Kumari Chauhan Death)

15 फरवरी, 1948 को कलबोडी (सिवनी, एमपी) के पास एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उनके नाम पर एक भारतीय तटरक्षक जहाज का नाम रखा गया है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जबलपुर नगर निगम कार्यालय के सामने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा स्थापित की गयी है.


FAQ – Frequently Asked Questions

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान कौन है?

Ans: सुभद्रा कुमारी चौहान एक बहुत ही प्रसिद्द कवयित्री थी

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु कब हुईं?

Ans: 15 फरवरी,1948 को एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता कौन है?

Ans: उनकी कविताओं में ‘मुकुल’, कहानी संग्रह ‘बिखरे मोती’, ‘सीधे-सादे चित्र और ‘चित्रारा आदि प्रसिद्द है

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था?

Ans: सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का नाम क्या था?

Ans: सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का नाम ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान था

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे चर्चित कविता कौन सी है?

Ans: सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे चर्चित कविता ”झाँसी की रानी” है

Q. मेरी प्यारी हिंदी कविता की कवयित्री का क्या नाम है?

Ans: मेरी प्यारी हिंदी कविता की कवयित्री का नाम सुभद्रा कुमारी चौहान है

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं की क्या विशेषता थी?

Ans: सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओ में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान आदि का वर्णन था


निष्कर्ष

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